
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय (Rabindranath Tagore Biography in Hindi)
रबीन्द्रनाथ टैगोर जैसे व्यक्तित्व के बारे शब्दो से बया करना मुश्किल है। रबीन्द्रनाथ टैगोर एक विश्वविख्यात साहित्यकार,कवि और दार्शनिक थे।
जिनके सम्पूर्ण जीवन से एक प्रेरणा या सीख ली जा सकती है। वे अकेले मात्र ऐसे भारतीय साहित्यकार हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है। वह दुनिया के अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्र गान हैं।
भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय सभ्यता की जो अच्छाइया थी उनको पश्चिम में और वहां की अच्छाइयों को यहाँ पर लाने में महत्पूर्ण भूमिका निभाई।
वे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। उनकी प्रतिभा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया सकते है की जब वे मात्र 8 साल के थे तब उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी।
16 साल की उम्र में ‘भानुसिम्हा’ उपनाम से उनकी कवितायेँ प्रकाशित भी हो गयीं। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने , लगभग 2230 गीतों की रचना की भारतीय संस्कृति मे, जिसमे ख़ास कर बंगाली संस्कृति मे, अमिट योगदान के लिए याद किया जायेगा।
उन्होंने ब्रिटिश राज की भर्त्सना करते हुए देश की आजादी की मांग की। उन्होंने जलिआंवाला बाग़ कांड के बाद अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाइटहुड का त्याग कर दिया।
वे एक ऐसी छवि है जो, अपने जन्म से लेकर मत्यु तक, कुछ ना कुछ सीख देकर जाते है। आइये पढ़ते है रबीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
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Contents
रबीन्द्रनाथ टैगोर का बचपन (Rabindranath Tagore’s childhood)
रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माताका नाम शारदा देवी थीं।
वह अपने माँ-बाप की 13 संतानों में सबसे छोटे थे। जब वे छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया और चूँकि उनके पिता अक्सर यात्रा पर ही रहते थे इसलिए उनका लालन-पालन नौकरों-चाकरों द्वारा ही किया गया।
उनके सबसे बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे। उनके दूसरे भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे।
उनके एक और भाई ज्योतिन्द्रनाथ संगीतकार और नाटककार थे। उनकी बहन स्वर्नकुमारी देवी एक कवयित्री और उपन्यासकार थीं।
उनके भाई हेमेंद्रनाथ उन्हें पढाया करते थे। इस अध्ययन में तैराकी, कसरत, जुडो और कुश्ती भी शामिल थे। उन्हें औपचारिक शिक्षा पसंद नहीं थी।
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि औपचारिक शिक्षा उनको इतनी नापसंद थी कि कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में वो सिर्फ एक दिन ही गए थे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर अपने पिता के साथ कई महीनों के भारत भ्रमण किया करते थे। वे परिवार के जागीर शान्तिनिकेतन और अमृतसर भी गए।
डलहौज़ी में उन्होंने इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान, संस्कृत, जीवनी का अध्ययन किया और कालिदास के कविताओं की विवेचना की।
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शिक्षा (education)
रबीन्द्रनाथ टैगोर जन्म से ही, प्रतिभा के धनी थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के, बहुत ही प्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर स्कूल मे हुई।
इनके पिता रबीन्द्रनाथ को बैरिस्टर बनाना चाहते थे। लेकिन उनकी रूचि साहित्य मे थी, रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता ने 1878 मे उनका लंदन के विश्वविद्यालय मे दाखिला कराया
परन्तु, बैरिस्टर की पढ़ाई मे रूचि नही होने के कारण, 1880 मे वे बिना डिग्री लिये ही वापस आ गये। रबीन्द्रनाथ टैगोर का विवाह 1883 में म्रणालिनी देवी से हुआ।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख योगदान
साल 1901 में रविंद्रनाथ शान्तिनिकेतन चले गए। वह यहाँ एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे। यहाँ पर उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल की स्थापना किया।
उन्होंने यहाँ पर बहुत सारे पेड़ लगाये और एक सुन्दर बगीचा भी बनाया। यहीं पर उनकी पत्नी और दो बच्चों की मौत भी हुई।
उनके पिता भी सन 1905 में चल बसे। इस समय तक उनको अपनी विरासत से मिली संपत्ति से मासिक आमदनी भी होने लगी थी।
14 नवम्बर 1913 को रबीन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकैडमी ने उनके कुछ कार्यों के अनुवाद और ‘गीतांजलि’ के आधार पर उन्हें ये पुरस्कार देने का निर्णय लिया था।
अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया जिसे रबीन्द्रनाथ ने 1919 के जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड के बाद नाइटहुड उपाधि को लौटा दिया।
वर्ष 1921 में उन्होंने कृषि अर्थशाष्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर उन्होंने अपने आश्रम के पास ही ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया।
अपने जीवन के अंतिम दशक में टैगोर सामाजिक तौर पर बहुत सक्रीय रहे। इस दौरान उन्होंने लगभग 15 गद्य और पद्य कोष की रचना की।
उन्होंने इस दौरान लिखे गए साहित्य के माध्यम से मानव जीवन के अनेक पहलुओं को छुआ।
सन 1878 से लेकर सन 1932 तक उन्होंने 30 देशों की यात्रा की। उनकी यात्राओं का मुख्य मकसद अपनी साहित्यिक रचनाओं को उन लोगों तक पहुँचाना था जो बंगाली भाषा नहीं समझते।
प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि विलियम बटलर यीट्स ने गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद का प्रस्तावना दिया। उनकी अंतिम विदेश यात्रा सन 1932 में सीलोन (अब श्रीलंका) की थी।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की उपलब्धिया
रबीन्द्रनाथ टैगोर को अपने जीवन मे, कई उपलब्धियों या सम्मान दिया गया परन्तु, सबसे प्रमुख थी “गीतांजलि” 1913 मे, गीतांजलि के लिये, रबीन्द्रनाथ टैगोर को “नोबेल पुरुस्कार” से सम्मानित किया गया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने, भारत को और बंगला देश को, उनकी सबसे बड़ी अमानत के रूप मे, राष्ट्रगान दिया है जोकि, अमरता की निशानी है।
हर महत्वपूर्ण अवसर पर, राष्ट्रगान गाया जाता है जिसमे , भारत का “जन-गण-मन है” व बंगला देश का “आमार सोनार बांग्ला” है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर अपने जीवन मे तीन बार अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक से मिले जो रबीन्द्रनाथ टैगोर जी को रब्बी टैगोर कह कर पुकारते थे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की म्रत्यु (Rabindranath Tagore Death)
उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये। वर्ष 1937 के अंत में वो अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे।
इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कवितायें लिखते। इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकाता मे हुआ। रबीन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसा व्यक्तित्व है जो, मर कर भी अमर है।
मै यह आशा करता हु, कि रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय (Rabindranath Tagore Biography in Hindi) आपको जीवन में प्रेरणा देगा।
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